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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2677
आईएसबीएन :0

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हिन्दी काव्य का इतिहास

अध्याय - 7

निर्गुण एवं सगुण काव्यधारायें

 

प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।

अथवा
निर्गुण संत कवियों के साहित्यक अवदान को बताइये।
अथवा
निर्गुण सन्त कवियों का परिचय दीजिये।

उत्तर -

प्रमुख निर्गुण सन्त कवि और उनका अवदान

निर्गुण सन्तों के विचारधार के बीज सिद्ध नाथ कवियों की रचनाओं में तो मिलते ही हैं। आदिकाल में नामदेव ने भी योग दिया था। भक्तिकालीन निर्गुण भक्त कवियों में कबीर, दादू, नानक, रैदास, सुन्दरदास, मलूकदास प्रभृति सन्तों ने भक्ति भावना के प्रसार और भक्ति काव्य की रचना में ना केवल स्वयं उल्लेखनीय योग दिया, अपितु इनकी शिष्य परम्परा में बाद में भी निर्गुण भक्ति काव्य की रचना होती रही। यहाँ प्रमुख सन्त कवियों और उनका अवदान प्रस्तुत है।

रामानन्द - रामानन्द अपने गुरु के सर्वाधिक यशस्वी एवं प्रगतिशील विचारक थे। सन्त- मत के प्रचार प्रसार का श्रेय इन्हीं को है। नाभादास ने भक्तमाल में लिखा है कि इनके अनेक शिष्य प्रशिष्य थे, जिनमें अनन्तदास, कबीर, पीपा, धन्ना आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। रामानन्द को दीर्घ, पवित्र एवं साधानात्मक जीवन प्राप्त हुआ, किन्तु इनके आविर्भाव - काल, निधन- काल तथा जीवनकाल के सम्बन्ध में कोई प्रमाणिक जानकारी नहीं है। भक्तमाल के अनुसार ये रामानुजचार्य के शिष्य परम्परा में चतुर्थ शिष्य थे। इनका आर्विकाल चौदहवीं शताब्दी का अन्तिम चरण माना जाता है, क्योंकि यह प्रसिद्ध है कि ये कबीर और पीपा के गुरु थे और इन दोनों का आर्विभाव-काल क्रमशः 1399 ई. तथा 1425 ई. स्वीकार किया जाता है। रामानन्द के निधन काल के सम्बन्ध में दो मत प्रचलित हैं कुछ विद्वानों का मत है कि इनकी मृत्यु 1463 ई. में हुई थी और कुछ का मत है, इन्होनें 1447 ई. में शरीर का विसर्जन किया। 'श्रीभक्तमाल सटीक के अनुसार इनका जन्म प्रयाग में कान्यकुब्ज ब्राह्मण कुल में हुआ था। इनकी दीक्षा काशी में हुई और स्वामी रामानन्द इनके दीक्षा गुरु थे।

कबीरदास - भारतीय धर्म साधना के इतिहास में कबीर दास ऐसे महान विचारक एवं प्रतिभाशाली महाकवि हैं जिन्होनें शताब्दियों की सीमा का उल्लंघन कर दीर्घकाल तक भारतीय जनता का पथ आलोकित किया और सच्चे अथों में जन-जीवन का नायकत्व किया। 'कबीर परिचई' के अनन्तदास ने कबीरदास के व्यक्तिगत और जीवनी से सम्बन्धित कुछ तथ्यों का उल्लेख स्पष्ट शब्दों में किया है। उनके अनुसार वे जन्म के जुलाहे थे, उनका निवास स्थान काशी था, उनके गुरु रामानन्द थे, सिकन्दर लोदी ने उन्हें अनेक प्रकार की यातनायें दी थीं तथा उन्होनें 120 वर्ष का पवित्र जीवन पाया। 

अन्तः कवि - साक्ष्य और 'कबीर चरित्रबोध' के प्रमाण से यह निष्कर्ष प्राप्त होता है कि कबीर का आर्विभाव 137 ई. में हुआ था। अर्विभाव काल के समान ही उनका अवसान काल भी अनिश्चित और रहस्यमय बना हुआ है। 'भक्तमाल' के टीकाकरण प्रियादास के अनुसार उनका देहावसान मगहर में 1492 ई. में हुआ। इस सम्बन्ध मे एक जनश्रुति भी प्रचलित है -

संवत पंद्रह से पछत्तरा, कियो मगहर को गौन।
माघ सुदी एकादशी, रलो पौन में पौन ॥

प्रसिद्ध है कि कबीर रामानन्द के शिष्य थे 'भक्तमाल' में रामानन्द के प्रमुख शिष्यों में कबीर को विशिष्ट स्थान प्रदान किया गया है। जाति जुलाहा नाम कबीरा जैसे उल्लेखों से स्पष्ट है कि जाति पाँति के कटु आलोचक कबीर ने अपने को जुलाहा जाति का होना स्वीकार किया है। यह अन्तः साक्ष्य सर्वथा विश्वसनीय है और प्रमाणिक है। जनश्रुतियों में प्रसिद्ध है कि कबीर की पत्नी का नाम 'लोई' था। उनके सन्तान के सम्बन्ध में पुत्र कमाल और पुत्री कमाली का उल्लेख मिलता है।

कबीर के काव्य में दाम्पत्य एवं वात्सल्य के द्योतक प्रतीकों का सुन्दर प्रयोग हुआ है। उनकी रचनाओं में सांकेतिक प्रतीक, पारिभाषिक प्रतीक संख्यामूलक प्रतीक तथा प्रतीकात्मक उलटवासियों के सुन्दर उदाहरण मिलते हैं। प्रभाव साम्य के कारण उनके प्रतीकों से तृाश्दी भावना जाग्रत होती है। सत्य तो यह है कि काव्य-रचना उनका साध्य या लक्ष्य नहीं था, फिर अपने महान सन्देशों की अभिव्यक्ति के लिये उन्हें काव्य का माध्यम बनना पड़ा। इस प्रकार रहस्यवादी संन्त और धर्मगुरु होने के साथ साथ वे भाव प्रवीण कवि भी थे।

रैदास - मध्य युगीन साधकों में रैदास अथवा रविदास का विशिष्ट स्थान है। निम्न वर्ग में समुत्पन्न होकर भी उत्तम जीवन-शैली उत्कृष्ट साधना पद्धति तथा उल्लेखनीय आचरण के कारण व आज भी भारतीय धर्म साधना के इतिहास में सादर स्मरण किये जाते हैं। रैदास का जन्म काशी में हुआ था, काशी को ही उनका निवास स्थान माना गया है। इसी कारण से कबीर की भाँति इनके जीवनकाल के विषय में भी मतभेद है। 'रैदास की परचई' में जन्मकाल का उल्लेख नहीं है। कवि का जन्मकाल 1396 ई. तथा मृत्युकाल 1446 ई. के मध्य होना चाहिये। यह भी प्रसिद्ध है कि मीराबाई के गुरु थे। रैदास विवाहित थे एवं उनकी पत्नी का नाम लोना था। उनका मोक्ष स्थान काशी का गंगाघाट था।

रैदास मूलतः सन्त थे, फलस्वरूप कबीर की भाँति उनका बल भी कलापक्ष की अपेक्षा प्रतिपाद्य पर अधिक रहा है। अन्य ब्रह्ममार्गी कवियों की भाँति उनके लिये भी निर्गुण ब्रहम्य अनुभूति और जिज्ञासा का विषय है। कभी वे उसकी सत्ता और स्वरूप की अभिव्यक्ति में अपनी असमर्थता स्वीकार करते हैं, तो अन्यत्र से एक सुनिश्चित स्वरूप देने के लिये उन्होनें ईश्वर के समस्त रूपों में ऐक्य और अधिन्नता के दर्शन किये हैं। उपमा तथा रूपक अंलकार कवि को विशेष प्रिय रहे हैं। उनकी काव्य-शैली के परिचयार्थ निम्नलिखित उदाहरण दृष्टव्य हैं

अब कैसे छूटे राम नाम रट लागी।
प्रभु जी तुम चन्दन हम पानी, जाकी अंग-अंग बास समानी।

नानकदेव - नानकपंथ के प्रवर्तक गुरु नानकदेव इतिहास प्रसिद्ध व्यक्ति है उनके द्वारा संस्थापित सम्प्रदाय ने उन्हीं के जीवनकाल में एक व्यापक संगठन का रूप धारण कर लिया था। राजनीतिक परिस्थितियों के कारण उनका सम्प्रदाय और भी व्यापक, सुदृढ़ और सुव्यवस्थित होता गया। उनमें अदभुत संगठन शक्ति, क्षमाशीलता, और दूरदर्शिता विद्यमान थी। उनका जन्म लाहौर के निकट राईभाई के तलवण्डी ग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम कालूचन्द तथा माता का नाम तृप्ता था। बाल्यावस्था मे ही उन्हें संस्कृत, फारसी, पंजाबी, एवं हिन्दी की शिक्षा प्राप्त हुई। पिता की भाँति श्रीचन्द्र भी विख्यात भ्रमणशील साधु हुए और उन्होनें 'उदासी सम्प्रदाय' का प्रवर्तन किया। गुरु नानक भ्रमणशील साधु थे। उन्होनें सभी दिशाओं में यात्रायें की थीं। कबीर की भाँति उनके काव्य में भी शान्त रस की निर्बाध धारा प्रवाहित हुई है, यद्यपि कहीं-कहीं करुण, अद्भुद आदि कुछ अन्य रसों के अनुकूल सामग्री भी प्राप्त होती है। नानक के अनुसार ईश्वर कृपा से तत्व दर्शन तो हो जाता है, किन्तु उस अनुभव की अभिव्यक्ति सदैव नहीं हो पाती।

नानक ने अनेक पदों की रचना की जो ग्रन्थ साहिब' में संकलित है, 'जयुजी' नामक दर्शन का सार तत्व है, 'असादीवार' 'रहिरास' और सोहिला उनकी प्रसिद्ध रचनायें हैं। नानकदेव की काव्य भाषा के तीन रूप हैं, हिन्दी, फारसी, बहुल पंजाबी, उपमा, रूपक, प्रतीक और अनुप्रास कवि के प्रिय अंलकार हैं। छन्दों का प्रयोग उन्होनें नहीं किया, उनके पद राग-रागनियों में रचित है। शान्त रस की निर्बाध धारा उनके काव्य में प्रवाहित हुई हैं। ऐतिहासिक वर्णनों में करुण रस एवं शृंगार के पद भी विरचित है।

जम्भनाथ - सन्त जम्भनाथ का जन्म 1451 ई. में जोधपुर राज्य के नागौर प्रदेश के पीपासर ग्राम मे राजपूत परिवार में हुआ था। चौतिस वर्ष की अवस्था तक इन्होंने एक भी शब्द उच्चरित नही किया। सिद्धि प्राप्त हो जाने के बाद ये मुनीद्र जन्भ ऋषि के नाम से विख्यात हुए इनकी शिक्षा दिक्षा, विवाह, परिवार आजीविका आदि के विषय में कोई विशेष विवरण नहीं मिलता, ये आजीवन ब्रह्म रहे। यह भी प्रसिद्ध है कि किन्हीं बाबा गोरखनाथ ने उन्हें दीक्षा प्रदान की थी। स्वभाव से यह बड़े विनयशील थे और विनम्र थे। काव्य-रचना में इनकी अच्छी गति थी, परन्तु दुर्भाग्य से अभी तक इनकी कोई कृति ही मिली है कविपथ संग्रहो मे इनकी स्फुट रचनायें संकलित हैं।

हरिहरदास निरंजनी - सन्त हरिहरदास निरंजनी सम्प्रदाय के कवि थे, जिसका मूलस्रोत नाथ पन्त है, साधना क्षेत्र में इस सम्प्रदाय को नाथ पंथ एवं सन्त मत की मध्यवर्ती कड़ी कहा जा सकता है। यह एक प्राचीन धर्म-सम्प्रदाय है, जिसका प्रभाव उडीसा प्रान्त में किसी न किसी रूप में आज तक विद्यमान है। इस सम्प्रदाय का इतिहास पूर्णरूपेण ज्ञात नहीं है। प्रचलित है कि इस सम्प्रदाय के प्रवर्तक स्वामी निरंजन थे जो ब्रहम के निर्गुण रूप के उपासक थे। स्वामी निरंजन की जीवनी और सिद्धान्तों की स्पष्ट रूपरेखा प्राप्त नही है। अठारवीं शताब्दी के अन्तिम चरण में विद्यमान हरिराम जी की 'हरिदासजी की परिचई' में थी, इसी मक्तव्य का प्रतिपादन हुआ था। उनके अनुसार 1499 ई. की वसन्त पंचमी के दिन स्वयं हरि ने गुरु गोरखनाथ का रूप धारण करके इन्हें ब्रह्मज्ञान की दीक्षा दी थी। माया और लौकिक बन्धनों के प्रति उन्हें अरुचि है तथा मोक्ष लाभ ही उनका अभीष्ट है, 'गुणग्राही गोविन्द गुण भावा' 'भजि भजि राम परम पद पावा। ब्रह्म विषयक अतीन्द्रिय अनुभूति में रसमग्न होकर उन्हें अन्य विषय नीस्सार प्रतीत होते हैं। सन्तों' को दे ईश्वर के समान पूज्य मानते हैं। हरिदास की भाषा सरल ब्रजभाषा है। अन्य संतों की भाँति कलापक्ष के अलंकरण का आग्रह उनमें भी नही मिलता।

अन्य सन्त कवि - भक्तिकाल में सन्त काव्य धारा के विकास में सर्वाधिक कवियों का योगदान रहा है, जिसमें उपर्युक्त कवियों के अतिरिक्त कुछ अन्य को भी पर्याप्त लोकप्रियता प्राप्त हुई इनमें दादूदयाल, लालदास, मालूकदास, धर्मदास, रज्जब बाबरी साहिबा, सदना, बेनी, पीपा, सेन, धन्ना अगंद, प्रभूति सिरप गुरु प्रमुख शिष्य थे। 'कबीर वाणी के बीजक में संकलित करने का श्रेय इन्ही को प्राप्त है। सन्त सम्प्रदायों में बाबरी ग्रन्थ का विशेष महत्व है। बाबरी साहिबा इसी ग्रन्थ की प्रमुख सन्त थीं। किंवदन्ती है कि ये उच्च कुल की महिला थीं। बाबरी साहिबा सम्राट अकबर की सम सामयिक थीं। इनका समय 1542-1605 ई. के लगभग माना जाता है।

प्रस्तुत सन्दर्भ में निरंजनी सम्प्रदाय के सन्त निपट निरंजन स्वामी का उल्लेख भी अपेक्षित है। शिवसिंह सेंगर के मत से निपट निरंजन स्वामी गोस्वामी तुलसीदास के समकालीन थे और इन्होंने 'शान्त सरसी' तथा 'निरंजन संग्रह' नामक ग्रन्थों की रचना की थी। डा. रामकुमार वर्मा के अनुसार इनका जन्म 1539 ई. में हुआ था। कहा जाता है कि ये गौड़ ब्राह्मण थे और दौलताबाद के निवासी थे, ये अधिकतर काशी में रहते थे और निर्भीक तथा स्पष्टवादी व्यक्ति थे, निपट निरंजन न केवल उच्चकोटि के विचारक थे, वरन् अच्छे कवि भी थे। भाषा पर इनका अच्छा अधिकार था। इनकी काव्याभिव्यक्ति का रूप इनके व्यक्तित्व के अनुकूल ही बड़ा सरल और सुन्दर है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- इतिहास क्या है? इतिहास की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी साहित्य का आरम्भ आप कब से मानते हैं और क्यों?
  3. प्रश्न- इतिहास दर्शन और साहित्येतिहास का संक्षेप में विश्लेषण कीजिए।
  4. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व की समीक्षा कीजिए।
  5. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के सामान्य सिद्धान्त का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  7. प्रश्न- साहित्य के इतिहास दर्शन पर भारतीय एवं पाश्चात्य दृष्टिकोण का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का विश्लेषण कीजिए।
  9. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का संक्षेप में परिचय देते हुए आचार्य शुक्ल के इतिहास लेखन में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन के आधार पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  11. प्रश्न- इतिहास लेखन की समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की समस्या का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की पद्धतियों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  13. प्रश्न- सर जार्ज ग्रियर्सन के साहित्य के इतिहास लेखन पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  14. प्रश्न- नागरी प्रचारिणी सभा काशी द्वारा 16 खंडों में प्रकाशित हिन्दी साहित्य के वृहत इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  15. प्रश्न- हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रारम्भिक तिथि की समस्या पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- साहित्यकारों के चयन एवं उनके जीवन वृत्त की समस्या का इतिहास लेखन पर पड़ने वाले प्रभाव का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  17. प्रश्न- हिन्दी साहित्येतिहास काल विभाजन एवं नामकरण की समस्या का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन आप किस आधार पर करेंगे? आचार्य शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास का जो विभाजन किया है क्या आप उससे सहमत हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
  19. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास में काल सीमा सम्बन्धी मतभेदों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  21. प्रश्न- काल विभाजन की प्रचलित पद्धतियों को संक्षेप में लिखिए।
  22. प्रश्न- रासो काव्य परम्परा में पृथ्वीराज रासो का स्थान निर्धारित कीजिए।
  23. प्रश्न- रासो शब्द की व्युत्पत्ति बताते हुए रासो काव्य परम्परा की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए - (1) परमाल रासो (3) बीसलदेव रासो (2) खुमान रासो (4) पृथ्वीराज रासो
  25. प्रश्न- रासो ग्रन्थ की प्रामाणिकता पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  26. प्रश्न- विद्यापति भक्त कवि है या शृंगारी? पक्ष अथवा विपक्ष में तर्क दीजिए।
  27. प्रश्न- "विद्यापति हिन्दी परम्परा के कवि है, किसी अन्य भाषा के नहीं।' इस कथन की पुष्टि करते हुए उनकी काव्य भाषा का विश्लेषण कीजिए।
  28. प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  29. प्रश्न- लोक गायक जगनिक पर प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
  33. प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षित परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  34. प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
  35. प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
  36. प्रश्न- विद्यापति की भक्ति भावना का विवेचन कीजिए।
  37. प्रश्न- हिन्दी साहित्य की भक्तिकालीन परिस्थितियों की विवेचना कीजिए।
  38. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के उदय के कारणों की समीक्षा कीजिए।
  39. प्रश्न- भक्तिकाल को हिन्दी साहित्य का स्वर्णयुग क्यों कहते हैं? सकारण उत्तर दीजिए।
  40. प्रश्न- सन्त काव्य परम्परा में कबीर के योगदान को स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- मध्यकालीन हिन्दी सन्त काव्य परम्परा का उल्लेख करते हुए प्रमुख सन्तों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  42. प्रश्न- हिन्दी में सूफी प्रेमाख्यानक परम्परा का उल्लेख करते हुए उसमें मलिक मुहम्मद जायसी के पद्मावत का स्थान निरूपित कीजिए।
  43. प्रश्न- कबीर के रहस्यवाद की समीक्षात्मक आलोचना कीजिए।
  44. प्रश्न- महाकवि सूरदास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की समीक्षा कीजिए।
  45. प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
  46. प्रश्न- भक्तिकाल में उच्चकोटि के काव्य रचना पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- 'भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  48. प्रश्न- जायसी की रचनाओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  49. प्रश्न- सूफी काव्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  50. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए -
  51. प्रश्न- तुलसीदास कृत रामचरितमानस पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  52. प्रश्न- गोस्वामी तुलसीदास के जीवन चरित्र एवं रचनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
  54. प्रश्न- कबीर सच्चे माने में समाज सुधारक थे। स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  57. प्रश्न- हिन्दी की निर्गुण और सगुण काव्यधाराओं की सामान्य विशेषताओं का परिचय देते हुए हिन्दी के भक्ति साहित्य के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- निर्गुण भक्तिकाव्य परम्परा में ज्ञानाश्रयी शाखा के कवियों के काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
  59. प्रश्न- कबीर की भाषा 'पंचमेल खिचड़ी' है। सउदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- निर्गुण भक्ति शाखा एवं सगुण भक्ति काव्य का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  61. प्रश्न- रीतिकालीन ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक पृष्ठभूमि की समीक्षा कीजिए।
  62. प्रश्न- रीतिकालीन कवियों के आचार्यत्व पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
  63. प्रश्न- रीतिकालीन प्रमुख प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिए तथा तत्कालीन परिस्थितियों से उनका सामंजस्य स्थापित कीजिए।
  64. प्रश्न- रीति से अभिप्राय स्पष्ट करते हुए रीतिकाल के नामकरण पर विचार कीजिए।
  65. प्रश्न- रीतिकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों या विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  66. प्रश्न- रीतिकालीन रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रमुख कवियों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार दीजिए कि प्रत्येक कवि का वैशिष्ट्य उद्घाटित हो जाये।
  67. प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  68. प्रश्न- रीतिबद्ध काव्यधारा और रीतिमुक्त काव्यधारा में भेद स्पष्ट कीजिए।
  69. प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य विशेषताएँ बताइये।
  70. प्रश्न- रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
  71. प्रश्न- रीतिकाल के नामकरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  72. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्य के स्रोत को संक्षेप में बताइये।
  73. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्यिक ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  74. प्रश्न- रीतिकाल की सांस्कृतिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।
  75. प्रश्न- बिहारी के साहित्यिक व्यक्तित्व की संक्षेप मे विवेचना कीजिए।
  76. प्रश्न- रीतिकालीन आचार्य कुलपति मिश्र के साहित्यिक जीवन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  77. प्रश्न- रीतिकालीन कवि बोधा के कवित्व पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- रीतिकालीन कवि मतिराम के साहित्यिक जीवन पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- सन्त कवि रज्जब पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  80. प्रश्न- आधुनिककाल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
  81. प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  82. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
  83. प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
  84. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों की सोदाहरण विवेचना कीजिए।
  85. प्रश्न- भारतेन्दु युगीन काव्य की भावगत एवं कलागत सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- भारतेन्दु युग की समय सीमा एवं प्रमुख साहित्यकारों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  87. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य की राजभक्ति पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य का संक्षेप में मूल्यांकन कीजिए।
  89. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन गद्यसाहित्य का संक्षेप में मूल्यांकान कीजिए।
  90. प्रश्न- भारतेन्दु युग की विशेषताएँ बताइये।
  91. प्रश्न- द्विवेदी युग का परिचय देते हुए इस युग के हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  92. प्रश्न- द्विवेदी युगीन काव्य की विशेषताओं का सोदाहरण मूल्यांकन कीजिए।
  93. प्रश्न- द्विवेदी युगीन हिन्दी कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
  94. प्रश्न- द्विवेदी युग की छः प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
  95. प्रश्न- द्विवेदीयुगीन भाषा व कलात्मकता पर प्रकाश डालिए।
  96. प्रश्न- छायावाद का अर्थ और स्वरूप परिभाषित कीजिए तथा बताइये कि इसका उद्भव किस परिवेश में हुआ?
  97. प्रश्न- छायावाद के प्रमुख कवि और उनके काव्यों पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- छायावादी काव्य की मूलभूत विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  99. प्रश्न- छायावादी रहस्यवादी काव्यधारा का संक्षिप्त उल्लेख करते हुए छायावाद के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  100. प्रश्न- छायावादी युगीन काव्य में राष्ट्रीय काव्यधारा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  101. प्रश्न- 'कवि 'कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जायें। स्वच्छन्दतावाद या रोमांटिसिज्म किसे कहते हैं?
  102. प्रश्न- छायावाद के रहस्यानुभूति पर प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- छायावादी काव्य में अभिव्यक्त नारी सौन्दर्य एवं प्रेम चित्रण पर टिप्पणी कीजिए।
  104. प्रश्न- छायावाद की काव्यगत विशेषताएँ बताइये।
  105. प्रश्न- छायावादी काव्यधारा का क्यों पतन हुआ?
  106. प्रश्न- प्रगतिवाद के अर्थ एवं स्वरूप को स्पष्ट करते हुए प्रगतिवाद के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  107. प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- प्रयोगवाद के नामकरण एवं स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए इसके उद्भव के कारणों का विश्लेषण कीजिए।
  109. प्रश्न- प्रयोगवाद की परिभाषा देते हुए उसकी साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  110. प्रश्न- 'नयी कविता' की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  111. प्रश्न- समसामयिक कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों का समीक्षात्मक परिचय दीजिए।
  112. प्रश्न- प्रगतिवाद का परिचय दीजिए।
  113. प्रश्न- प्रगतिवाद की पाँच सामान्य विशेषताएँ लिखिए।
  114. प्रश्न- प्रयोगवाद का क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
  115. प्रश्न- प्रयोगवाद और नई कविता क्या है?
  116. प्रश्न- 'नई कविता' से क्या तात्पर्य है?
  117. प्रश्न- प्रयोगवाद और नयी कविता के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
  118. प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता तथा उनके कवियों के नाम लिखिए।
  119. प्रश्न- समकालीन कविता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

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